Tuesday, November 19, 2013

...राम भी होंगे रावण की कहानी भी होगी




राम ना सही पर मैं रावण भी नहीं हूँ
जीत ना सकूं मैं वो कायर भी नहीं हूँ
हर राग में हो सिर्फ अपना ही फ़साना
ऐसी महफ़िल का मैं शायर भी नहीं हूँ
बारिश की बूंदों से सिंचती है ये धरती
बादल ही सही, जो मैं पूरा सावन नहीं हूँ


जीवन छोटा तो है पर दिल बेचारा नहीं हूँ
दरिया सिमटा तो है जो बहती धारा नहीं हूँ
ऐसा सागर ही क्या जिसका किनारा न हो
ऐसा सूरज भी क्या जिससे उजाला न हो
फैला दुखड़ों का सारा यहाँ सैलाब सा है
ऐसी आहट भी क्या जिससे इशारा न हो


ऐसा बिखरा पड़ा अपना संसार क्यों है
दाम देने को बेताब यह बाज़ार क्यों है
अपने सपनों को ढहने से पहले बचालो
मजबूती से उठने की हिम्मत जुटालो
दुनिया हकीकत की ऐसी बयानी भी होगी
जहां राम भी होंगे रावण की कहानी भी होगी.

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