Monday, November 25, 2013

खेल के अंदर का 'खेल'

निर्मल बाबा के बाद एक बार फिर आशाराम बापू रेप व डौंडियाखेड़ा जैसी अन्य सनसनीखेज ख़बरों ने टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। हिंदी न्यूज चैनलों की पत्रकारीता के मानक में भी गिरावट आई है। सडक़ से लेकर कोर्ट तक यह बहस का विषय बना हुआ है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने भी मीडिया को 'संयम' बरतने कि गम्भीर सलाह दी है।
बीते साल निर्मल बाबा और उनका बहुत लोकप्रिय ‘प्रायोजित कार्यक्रम’ (पेड स्लॉट) – “थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा” ने हिंदी न्यूज चैनलों के दो धड़ों के बीच लड़ाई छेड़ दी थी। एक धड़ा निर्मल बाबा के प्रायोजित कार्यक्रम को चलाने वालों में शामिल था वहीं, दूसरा धड़ा इसके खिलाफ था और उनकी टीआरपी में लगातार गिरावट देखी गई। ठीक उसी समय खबरिया और गैर खबरिया चैनलों पर प्रसारित लाखों लोगों को हास्यास्पद और अवैज्ञानिक सुझाव देने वाले निर्मल बाबा के बारे में वेबसाइट, अखबारों और कुछ समाचार चैनलों में नए-नए खुलासे होने शुरू हो गए थे ।
मीडिया स्टडीज ग्रुप ने एक अध्ययन में पाया है कि कुछ समाचार चैनलों में ‘थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा’ के प्रायोजित कार्यक्रम को चलाने के पीछे मची होड़ का मकसद टीआरपी हासिल करना रहा। टीआरपी की यह होड़  अनैतिक गतिविधियों का नतीजा है। टीआरपी बढ़ाने की होड़ में शामिल कुछ न्यूज चैनलों के अलावा टैम मीडिया रिसर्च भी बराबर का दोषी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और एनबीए (न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन) भी इसके लिए कम जवाबदेह नहीं हैं। इन संस्थाओं ने भी बड़े पैमाने पर की जा रही इस धोखाधड़ी पर अपनी आंखें बंद रखीं। अब तक इन संस्थाओं ने चैनलों को अवैज्ञानिक और अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली सामग्री प्रसारित करने से नहीं रोका। इससे लोगों के बीच अवैज्ञानिक और अंधविश्वास को बढ़ावा मिला। यह पूरी तरह से नियमों और कानून का उल्लंघन है।
विस्तार से बात करने से पहले टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट्स) की प्रक्रिया की जांच करनी चाहिए। हम इसकी जटिलताओं में नहीं जाएंगे। देश के विभिन्न शहरों में 8,000 से अधिक टीआरपी मीटर लगाए गए हैं। वहां यह विभिन्न निर्धारित समय पर निर्धारित दर्शक वर्ग से आंकड़े जुटाता है । इस अध्ययन का उद्देश्य केवल समाचार चैनलों के इस मामले को बेहतर ढंग से समझना है। टैम से जुड़े चैनलों को पहले अपना एफपीसी (फिक्सड प्वाइंट चार्ट) देना होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो टैम को पहले से ही अपने प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की सूची देनी होती है। टैम इसके बदले चैनलों को जमा किए गए एफपीसी के आधार पर सप्ताह भर दिखाये गए कार्यक्रमों के आधार पर आंकड़े और विश्लेषण मुहैया कराता है। टीआरपी के आधार पर न्यूज चैनलों की रैंकिंग तय करने में एफपीसी आधारित आंकड़ों का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 


सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्यक्रम को संबंधित चैनलों ने खुद तैयार किया है और यह सामान्य एफपीसी का हिस्सा है। इसमें किसी भी कार्यक्रम को ‘पेड’ स्लॉट नहीं बताया गया है। आश्चर्य वाली बात है कि शीर्ष पांच कार्यक्रमों में से चार कार्यक्रम न्यूज बुलेटिन हैं। टैम और चैनल को यह स्पष्ट  करना चाहिए कि आखिर किस तरह से एक ‘प्रायोजित कार्यक्रम’ को न सिर्फ टीआरपी में गिना गया, बल्कि टैम की तरफ से धार्मिक/डेवोशनल कैटेगरी में जारी चौथे हफ्ते के शीर्ष पांच समाचार कार्यक्रमों में शामिल किया गया।‘प्रायोजित कार्यक्रम’ जोकि पूरी तरह से विज्ञापन है और यह सामग्री नियमावली (कंटेंट गाइडलाइन) का खुले तौर पर उल्लंघन भी है। 

Tuesday, November 19, 2013

...राम भी होंगे रावण की कहानी भी होगी




राम ना सही पर मैं रावण भी नहीं हूँ
जीत ना सकूं मैं वो कायर भी नहीं हूँ
हर राग में हो सिर्फ अपना ही फ़साना
ऐसी महफ़िल का मैं शायर भी नहीं हूँ
बारिश की बूंदों से सिंचती है ये धरती
बादल ही सही, जो मैं पूरा सावन नहीं हूँ


जीवन छोटा तो है पर दिल बेचारा नहीं हूँ
दरिया सिमटा तो है जो बहती धारा नहीं हूँ
ऐसा सागर ही क्या जिसका किनारा न हो
ऐसा सूरज भी क्या जिससे उजाला न हो
फैला दुखड़ों का सारा यहाँ सैलाब सा है
ऐसी आहट भी क्या जिससे इशारा न हो


ऐसा बिखरा पड़ा अपना संसार क्यों है
दाम देने को बेताब यह बाज़ार क्यों है
अपने सपनों को ढहने से पहले बचालो
मजबूती से उठने की हिम्मत जुटालो
दुनिया हकीकत की ऐसी बयानी भी होगी
जहां राम भी होंगे रावण की कहानी भी होगी.